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Chapter 1 - अपरहण

चैप्टर 1 : अपरहण

सुबह की पहली किरण ने खिड़की से झाँककर शौर्य के चेहरे को छुआ। उसकी पलकों ने धीरे-धीरे खुलते ही पूरे कमरे में सुनहरी रोशनी भर दी।

बाहर उत्तराखंड का पहाड़ी गाँव अब भी नींद से भरा था। हरी-भरी चोटियाँ सूरज की नरम रोशनी में चमक रही थीं। दूर कहीं किसान अपने खेतों में हल चला रहे थे। पास के पेड़ों पर बैठे पक्षियों की चहचहाहट से हवा गूंज रही थी।

शौर्य ने गहरी सांस ली। ठंडी हवा उसके चेहरे से टकराई। एक पल के लिए उसे ऐसा लगा जैसे दुनिया बिल्कुल शांत हो। लेकिन कहीं न कहीं मन में एक अजीब-सी बेचैनी थी।

तभी माँ की आवाज़ ने उस सन्नाटे को तोड़ दिया—

"शौर्य! उठ जा बेटा, दिन चढ़ आया है।"

"हाँ माँ... उठ रहा हूँ," शौर्य ने आधी नींद में कहा और करवट बदल ली।

कुछ देर बाद वह उठकर खिड़की तक आया। बाहर फैले पहाड़ों को देखता रहा। घर के सामने माँ का छोटा-सा बगीचा था। लाल-पीले फूलों की क्यारी ऐसे खिल रही थी जैसे सुबह की दुआ बनकर धरती पर उतरी हो।

माँ की आवाज़ फिर गूँजी—

"शौर्य, जल्दी नहा ले, नमन आने वाला है।"

"अभी आता हूँ माँ," शौर्य ने जवाब दिया और बाथरूम की ओर चला गया।

नहाकर जब वह नीचे आया तो देखा कि माँ रसोई में चाय बना रही थी। सीमा—एक मध्यम आयु की महिला—हमेशा मुस्कुराती रहती थी। लेकिन उसकी आँखों में कहीं गहराई में ऐसा खालीपन छिपा था जो कभी पूरी तरह भर नहीं पाया।

"माँ... आज का दिन कैसा लग रहा है?" शौर्य ने पास जाकर धीरे से पूछा।

सीमा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "अच्छा लग रहा है बेटा। तू खुश रहता है तो मेरा भी मन खुश हो जाता है।" फिर रुककर बोली, "वैसे, आज नमन के साथ क्या प्रोग्राम है?"

"शायद पढ़ाई करेंगे... या फिर गाँव में घूमने निकलेंगे," शौर्य ने मुस्कुराकर कहा।

सीमा की आँखों में हल्की चिंता उतर आई। "ध्यान रखना... ज्यादा देर मत रहना बाहर। आजकल कुछ अजीब हरकतें हो रही हैं गाँव में।"

"कैसी हरकतें माँ?" शौर्य ने चौंकते हुए पूछा।

"बस... कुछ नहीं। तू बस सावधान रहना," सीमा ने बात टाल दी।

इससे पहले कि शौर्य कुछ और पूछ पाता, दरवाज़े पर दस्तक हुई। शौर्य ने जाकर दरवाज़ा खोला तो सामने खड़े थे — चाचा रामेश्वर। लंबा कद, चौड़े कंधे और चेहरे पर गंभीरता की मोटी परत, जैसे हमेशा कोई बोझ उठाए हों।

"नमस्ते चाचा जी," शौर्य ने आदर से हाथ जोड़ दिए।

"नमस्ते बेटा। सीमा कहाँ है?" उनकी गहरी आवाज़ कमरे में गूँज उठी।

सीमा रसोई से निकलकर आई। "आइए जी, अंदर आइए। इतनी सुबह कैसे आना हुआ?"

रामेश्वर सोफे पर बैठते हुए बोले, "कुछ जरूरी बात करनी थी।" उनकी नज़र सीधे शौर्य पर टिक गई। "पढ़ाई का क्या हाल है?"

शौर्य सीधा होकर बोला, "अच्छी चल रही है चाचा जी। नमन के साथ पढ़ता रहता हूँ।"

रामेश्वर की आँखें सिकुड़ गईं। "हम्म... ठीक है। लेकिन सुनो शौर्य, ज़िंदगी आसान नहीं है। तुम्हारे पिता, हरिदत्त जी, के बाद तुम ही घर के जिम्मेदार हो। समझ रहे हो न?"

उनकी आवाज़ में कुछ ऐसी गंभीरता थी जो शौर्य को असहज कर गई।

एक पल के लिए कमरे में खामोशी छा गई। शौर्य के मन में पिता की याद कौंध गई — एक दुर्घटना, पाँच साल पुरानी, जिसने सब कुछ बदल दिया था। पिता का मजबूत हाथ अब उसकी पीठ पर नहीं था। लेकिन उनकी छोड़ी हुई जिम्मेदारी हर दिन उसका पीछा करती थी।

"जी चाचा जी," शौर्य ने धीरे से कहा।

सीमा ने बात बदलने की कोशिश की, "चाय पिएंगे आप?"

"हाँ, ले आओ," रामेश्वर ने कहा। फिर सहज होते हुए बोले, "सुचित्रा बता रही थी, अगले महीने बुआ कविता दिल्ली से आ रही हैं।"

सीमा की आँखों में चमक आ गई। "अरे वाह! कविता दीदी आएँगी तो घर फिर से रौनक से भर जाएगा।"

रामेश्वर हल्के से मुस्कुराए। "हाँ... और मुकेश भी आएगा। तुम जानते हो न, तुम्हारे छोटे चाचा कितने मजाकिया हैं।"

शौर्य के चेहरे पर भी हँसी आ गई। उसे मुकेश चाचा की याद आई — जो हमेशा चुटकुले सुनाकर सबको हँसा देते थे।

इतने में दूसरी दस्तक हुई। इस बार दरवाज़े पर खड़ा था — नमन ठाकुर। हंसमुख चेहरा, जिज्ञासु आँखें और हाथों में कुछ नई किताबें।

"नमस्ते अंकल," नमन ने अंदर आते ही कहा।

रामेश्वर ने उसे देखते ही सिर हिलाया, "नमस्ते बेटा। कैसे हो?"

"बहुत बढ़िया अंकल। पापा ने शौर्य के लिए ये नई किताबें भेजी हैं।" उसने किताबें आगे बढ़ाईं।

सीमा ने किताबें देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "वाह नमन! डॉक्टर साहब हमेशा शौर्य का ख्याल रखते हैं। बहुत अच्छे हैं तुम्हारे पापा।"

नमन ने गर्व से कहा, "जी आंटी। पापा कहते हैं कि शौर्य बहुत होशियार है, उसे अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए। वैसे आंटी, पापा ने कहा था कि आजकल आस-पास कुछ अजनबी लोग दिखे हैं। सबको सावधान रहना चाहिए।"

शौर्य और सीमा दोनों की सांस अटक गई। रामेश्वर का चेहरा और गंभीर हो गया।

"कैसे अजनबी?" रामेश्वर ने तेजी से पूछा।

"पता नहीं अंकल, लेकिन पापा कह रहे थे कि वो लोग किसी की तलाश में हैं। कल रात भी कुछ गाड़ियों की आवाज़ें आई थीं," नमन ने चिंता से कहा।

शौर्य के मन में डर बैठ गया। वही अजीब बेचैनी जो सुबह से थी, अब और तेज हो गई।

शौर्य के मन में डॉ. विवेक ठाकुर की छवि उभरी — गाँव के सबसे अच्छे डॉक्टर, जिन्होंने उसके पिता के जाने के बाद उसे कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया।

"चलो शौर्य, आज क्या पढ़ना है?" नमन ने माहौल हल्का करने की कोशिश करते हुए पूछा।

"पहले चाय पी लो," सीमा ने दोनों के लिए कप रखते हुए कहा। लेकिन उसके हाथ हल्के कांप रहे थे।

रामेश्वर ने चाय की चुस्की ली और गंभीर स्वर में बोले, "शौर्य, तुम्हारे पिता ने हमारे परिवार का नाम रोशन किया था। तुम भी उनकी तरह बन सकते हो। लेकिन याद रखना—व्यापार में सबसे बड़ी पूँजी होती है ईमानदारी।" फिर रुकते हुए बोले, "और अब जो नमन बता रहा है, तो तुम्हें और भी सावधान रहना होगा।"

शौर्य ने सिर झुकाकर कहा, "जी चाचा जी।"

रामेश्वर उठे और दरवाज़े की ओर बढ़े। "ठीक है, मैं चलता हूँ। और हाँ, किसी अजनबी को घर के आस-पास भी दिखे तो तुरंत मुझे बताना।"

दरवाज़ा बंद होते ही माहौल थोड़ा हल्का हुआ, लेकिन डर अब भी हवा में तैर रहा था।

सीमा ने घबराहट छुपाते हुए कहा, "बेटा, तुम लोग पढ़ाई करो। मैं बगीचे में काम देखती हूँ।"

दोनों दोस्त किताबें लेकर बैठ गए। नमन ने एक पन्ना खोलते हुए कहा, "देखो शौर्य, यहाँ जेनेटिक्स के बारे में लिखा है। कहते हैं कि भविष्य में हम अपने जीन्स तक बदल सकेंगे।"

शौर्य की आँखें चमक उठीं। "वाह... यह तो कमाल की बात है!"

नमन उत्साह से बोला, "हाँ! पापा कहते हैं, साइंस और टेक्नोलॉजी में बहुत कुछ बदल रहा है। कौन जाने, भविष्य हमारे लिए क्या लेकर आए।"

लेकिन शौर्य का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था। बार-बार अजनबियों वाली बात उसके दिमाग में घूम रही थी।

दोनों दोस्त किताबों में खोए ही थे कि बाहर से दूर कहीं से इंजन की आवाज़ आई। धीरे-धीरे वह आवाज़ पास आती जा रही थी।

शौर्य ने किताब से नज़र उठाई। "नमन... तूने सुना?"

नमन ने भौंहें सिकोड़ते हुए सिर हिलाया। "हाँ... लेकिन यहाँ कम ही गाड़ियां आती हैं।"

आवाज़ और पास आ गई। अब स्पष्ट रूप से कई गाड़ियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।

शौर्य खिड़की तक गया। बाहर धूल का हल्का गुबार दिखा, जैसे कोई काफिला इस तरफ आ रहा हो।

"नमन... मुझे लग रहा है कुछ ठीक नहीं है," शौर्य की आवाज़ में घबराहट थी।

नमन भी परेशान हो गया। "शौर्य, शायद हमें आंटी को बताना चाहिए।"

लेकिन इससे पहले कि वे कुछ कर पाते, बाहर ब्रेक की तेज आवाज़ आई। कई गाड़ियों की आवाज़ एक साथ रुकी।

शौर्य की सांस तेज़ हो गई। वह खिड़की से बाहर झाँका तो देखा कि तीन काली गाड़ियां उनके घर के सामने खड़ी थीं। उनके शीशे इतने काले थे कि अंदर कुछ दिखाई नहीं दे रहा।

"नमन... ये कौन लोग हैं?" शौर्य की आवाज़ कांप रही थी।

बगीचे में माँ ने भी गाड़ियों को देखा। उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। वह तेजी से घर की तरफ भागी।

पहली गाड़ी का दरवाज़ा खुला। एक लंबा आदमी बाहर निकला। उसके कपड़े काले थे और चेहरे पर मास्क था। उसके हाथ में कुछ था जो शौर्य को पहचान नहीं आया।

"माँ!" शौर्य चिल्लाया।

सीमा दरवाज़े तक पहुंची ही थी कि वो लोग तेजी से घर की तरफ बढ़े।

"शौर्य! भाग जा!" सीमा ने चीखकर कहा।

लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

धड़ाम!

घर का दरवाज़ा जोर से टूटा। काले कपड़ों में लिपटे, चेहरों को ढके हुए चार-पांच लोग तेजी से अंदर घुस आए।

कमरे में एक पल को सन्नाटा छा गया। फिर नमन चीख़ पड़ा, "शौर्यऽऽ!"

शौर्य पीछे हटने लगा। उसके हाथ-पैर कांप रहे थे। "तुम लोग कौन हो? मुझसे क्या चाहिए?"

उनमें से एक ने बिना कुछ कहे उसकी तरफ हाथ बढ़ाया। शौर्य ने दीवार के साथ खुद को दबा लिया।

"छोड़ो मुझे! मैंने कुछ नहीं किया!" शौर्य चिल्लाया।

लेकिन वो आदमी बिजली की तरह उसकी ओर बढ़ा। उसने शौर्य की बांह पकड़ ली। पकड़ इतनी मजबूत थी कि जैसे लोहे की जकड़न हो।

"नहीं! छोड़ो!" शौर्य पूरी ताक़त से झटके मार रहा था।

बगीचे से माँ की चीख़ गूँजी, "मेरे बेटे को मत ले जाओ! मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं!"

सीमा दरवाज़े पर पहुंची। उसकी आंखों में आंसू थे लेकिन वो हार मानने को तैयार नहीं थी। "शौर्य को छोड़ दो! जो चाहिए मुझसे लो!"

नमन ने हिम्मत करके शौर्य को खींचने की कोशिश की। "शौर्य! मैं तुझे नहीं जाने दूंगा!"

लेकिन दूसरे नकाबपोश ने उसे जोर का धक्का दिया। वह फर्श पर गिर पड़ा। उसके घुटने से खून निकलने लगा।

"नमन!" शौर्य की आवाज़ दर्द से भर गई।

उसी वक्त, एक नकाबपोश ने कुछ स्प्रे किया। तुरंत कमरे में तेज गंध फैल गई।

शौर्य की साँसें तेज़ हो गईं। उसकी नज़र धुंधली पड़ने लगी। "ये... ये क्या... कर रहे... हो?"

"शौर्य! बेटा!" माँ ने आखिरी बार चिल्लाकर कहा।

शौर्य के कानों में सिर्फ माँ की रुलाई गूंज रही थी। उसकी आँखों के सामने सब कुछ घूमने लगा।

आखिरी बार उसने देखा — माँ दरवाज़े पर खड़ी रो रही थी। उसके हाथ हवा में लटक रहे थे, बेबस।

और नमन... फर्श पर बैठा, आँसू पोंछते हुए, "शौर्य... शौर्य..." कहता हुआ।

अगले ही पल, वे लोग उसे बाहर खींच ले गए।

एक गाड़ी का दरवाज़ा खुला। अंधेरे में शौर्य को धकेल दिया गया।

गाड़ी के इंजन की आवाज़ गूंजी।

और फिर... सब कुछ अंधेरा हो गया।

दूर जाती गाड़ियों की आवाज़ में सीमा की चीखें दब गईं। नमन अभी भी फर्श पर बैठा, उस दिशा में देख रहा था जहाँ उसका सबसे अच्छा दोस्त गायब हो गया था।

घर में सिर्फ खामोशी रह गई थी। एक डरावनी, दिल दहलाने वाली खामोशी।